लिव-इन-रिलेशनशिप गलत है, इससे समाज खत्म हो जाएगा – नितिन गडकरी
लिव-इन-रिलेशनशिप (Live In Relationship), जिसमें दो लोग विवाह के बिना पति-पत्नी की तरह साथ रहते हैं, आज भी भारत में एक जटिल और विवादित मुद्दा बना हुआ है।हाल ही में, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने लिव-इन-रिलेशनशिप को लेकर एक चर्चा छेड़ दी है। उन्होंने अनफ़िल्टर्ड बाय समदीश पॉडकास्ट शो में कहा कि “लिव-इन-रिलेशनशिप में रहना गलत है और इससे समाज खत्म हो जाएगा।” उनके मुताबिक, समाज को व्यवस्थित ढंग से चलाने के लिए नियमों का पालन जरूरी है। उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि “लिव-इन में पैदा होने वाले बच्चों का भविष्य कैसा होगा?” यह बयान ऐसे समय पर आया है जब कुछ ही समय पहले उत्तराखंड में यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) के अंतर्गत लिव-इन-रिलेशनशिप के लिए रजिस्ट्रेशन अनिवार्य कर दिया गया है। बताया जाता है कि यह कदम समाज में लिव-इन-रिलेशनशिप के प्रति स्पष्टता और जवाबदेही लाने के लिए उठाया गया है।
गडकरी ने कहा, “एक बार मैं लंदन में ब्रिटिश संसद गया था। वहां के प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री ने मुझसे पूछा कि आपके देश में सबसे बड़ी समस्या क्या है? मैंने कहा कि गरीबी और भुखमरी। जब मैंने उनसे पूछा कि आपकी क्या समस्या है, तो उन्होंने कहा कि यूरोपीय देशों की सबसे बड़ी समस्या यह है कि युवा लड़के और लड़कियां शादी करने के लिए उत्सुक नहीं हैं। वे लिव-इन रिलेशनशिप को प्राथमिकता दे रहे हैं।” हालांकि, लिव-इन-रिलेशनशिप को लेकर सामाजिक दृष्टिकोण भले ही बंटा हुआ हो, लेकिन भारतीय कानून और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों ने इसे वैधता प्रदान की है। इस लेख में हम लिव-इन-रिलेशनशिप से जुड़े भारतीय कानून, सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसलों और उनके प्रभाव पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
भारतीय कानून में Live In Relationship को दर्जा
भारत में अब तक लिव-इन-रिलेशनशिप को लेकर कोई विशेष और संहिताबद्ध कानून नहीं बना है। हालांकि, कुछ कानूनी प्रावधान और सुप्रीम कोर्ट के फैसले इसे वैधता प्रदान करते हैं। घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के तहत इसे “घरेलू संबंध” के रूप में मान्यता दी गई है। इस अधिनियम की धारा 2(f) के तहत, यदि दो लोग “एक साझी गृहस्थी” में रहते हैं, तो उन्हें घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत सुरक्षा का अधिकार प्राप्त होता है। इसका मतलब यह है कि लिव-इन-रिलेशनशिप में रहने वाले लोग भी उन अधिकारों का दावा कर सकते हैं, जो विवाह में रहने वाले लोगों को मिलते हैं। यह प्रावधान स्पष्ट करता है कि भारतीय कानून लिव-इन-रिलेशनशिप को अपराध नहीं मानता। इसके अलावा, समय-समय पर सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे मामलों में महत्वपूर्ण निर्णय दिए हैं, जो लिव-इन-रिलेशनशिप को कानूनी संरक्षण प्रदान करते हैं।
लता सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2006)
इस ऐतिहासिक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दो वयस्कों को अपनी मर्जी से साथ रहने का अधिकार है। अदालत ने स्पष्ट किया कि लिव-इन-रिलेशनशिप (Live In Relationship) में रहने वाले दो व्यक्तियों को अपने फैसले लेने की स्वतंत्रता है, और इसे किसी भी प्रकार का अपराध नहीं माना जा सकता। यह फैसला व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सहमति के अधिकार को स्थापित करने में मील का पत्थर साबित हुआ।
इंदिरा शर्मा बनाम वीवी शर्मा (2013)
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने लिव-इन-रिलेशनशिप को लेकर विस्तृत दिशा-निर्देश दिए। अदालत ने कहा कि लिव-इन-रिलेशनशिप को वैधता प्रदान करने के लिए यह जरूरी है कि दोनों पक्ष एक स्थायी और निरंतर संबंध में हों। इसका मतलब यह है कि केवल अस्थायी या थोड़े समय के लिए साथ रहना लिव-इन-रिलेशनशिप नहीं माना जा सकता। इसके साथ ही, अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि ऐसी व्यवस्था में महिला को पुरुष की संपत्ति पर अधिकार नहीं होगा, लेकिन वह भरण-पोषण का दावा कर सकती है।
चनमुनिया बनाम वीरेंद्र कुमार (2010)
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने महिला अधिकारों को लेकर एक ऐतिहासिक निर्णय दिया। अदालत ने कहा कि लिव-इन-रिलेशनशिप में रहने वाली महिला को भी भरण-पोषण का अधिकार प्राप्त है। यदि महिला यह साबित कर देती है कि वह पुरुष के साथ पति-पत्नी की तरह रह रही थी, तो उसे भरण-पोषण का दावा करने का पूरा हक है।
रविंद्र सिंह बनाम मल्लीका अर्जुन (2011)
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने लिव-इन-रिलेशनशिप से जन्मे बच्चों के अधिकारों को स्पष्ट किया। अदालत ने कहा कि ऐसे बच्चों को उनके माता-पिता की संपत्ति में वही अधिकार प्राप्त होंगे, जो विवाह से जन्मे बच्चों को मिलते हैं। यह फैसला लिव-इन-रिलेशनशिप में पैदा हुए बच्चों की सामाजिक और कानूनी स्थिति को मजबूत करता है।
नंदकुमार बनाम केरल राज्य (2018)
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि कोई पुरुष या महिला 18 वर्ष से अधिक आयु के हैं, तो वे अपनी मर्जी से लिव-इन-रिलेशनशिप में रह सकते हैं। भले ही उनकी शादी कानूनी रूप से मान्य न हो, लेकिन उनका साथ रहना किसी भी प्रकार से अवैध नहीं है।
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लिव-इन-रिलेशनशिप: अधिकार और शर्तें
सुप्रीम कोर्ट ने Live-In-Relationship को लेकर कुछ शर्तें और अधिकार तय किए हैं, जो इसे वैधता प्रदान करते हैं।
- साझी गृहस्थी: लिव-इन-रिलेशनशिप में रहने वाले लोगों को यह साबित करना होगा कि वे पति-पत्नी की तरह एक साथ रह रहे हैं।
- युक्तियुक्त अवधि: दोनों पक्षों को एक युक्तियुक्त अवधि तक साथ रहना होगा। इसका मतलब यह है कि केवल कुछ दिनों के लिए साथ रहने को लिव-इन-रिलेशनशिप नहीं माना जा सकता।
- भरण-पोषण का अधिकार: महिला को पुरुष से भरण-पोषण का अधिकार प्राप्त है, यदि वह यह साबित कर सके कि वे पति-पत्नी की तरह रह रहे थे।
- संतान का अधिकार: लिव-इन-रिलेशनशिप में पैदा हुई संतान को माता-पिता की संपत्ति में उत्तराधिकार का अधिकार मिलता है।
लिव-इन-रिलेशनशिप (Live In Relationship) भारतीय समाज में परंपरा और आधुनिकता के बीच एक संवेदनशील मुद्दा है। जबकि भारतीय कानून और सुप्रीम कोर्ट ने इसे वैधता प्रदान की है, समाज का बड़ा वर्ग इसे अब भी स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है। नितिन गडकरी के बयान ने इस बहस को और तेज कर दिया है। लिव-इन-रिलेशनशिप व्यक्तिगत स्वतंत्रता, समान अधिकार और आधुनिक जीवनशैली की बात करता है, लेकिन अधिकांश लोगों का मानना रहा है कि यह समाज की पारंपरिक संरचना को चुनौती देता है। इसके कानूनी पहलुओं को लेकर भारत में स्पष्टता आ रही है, लेकिन इसे सामाजिक मान्यता मिलने में अभी समय लग सकता है। हर चीज की कई ख़ूबियां और खामियां दोनों होती हैं और इस विषय पर संतुलित दृष्टिकोण और संवेदनशीलता के साथ चर्चा की आवश्यकता है ताकि व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामाजिक स्थिरता दोनों का सम्मान किया जा सके।