UPSC Reservation: 45 पदों पर ‘लेटरल एंट्री’ को लेकर बवाल, उठे कई सवाल
UPSC द्वारा 45 वरिष्ठ पदों के लिए ‘लेटरल एंट्री’ का विज्ञापन अब नए विवाद को जन्म देता दिखाई पड़ रहा है। राहुल गांधी ने कहा आईएएस का ‘निजीकरण’ आरक्षण खत्म करने की ‘मोदी की गारंटी’ है।
UPSC Lateral Entry Reservation Controversy Explained | भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों में वरिष्ठ अधिकारियों की नियुक्ति के लिए ‘लेटरल एंट्री‘ की व्यवस्था चर्चा का विषय बनी हुई है। हाल ही में UPSC (Union Public Service Commission) द्वारा 45 वरिष्ठ पदों के लिए विशेषज्ञों की भर्ती का विज्ञापन जारी किया गया, जिसके बाद सोशल मीडिया पर तमाम लोग और विपक्षी पार्टियों ने इस कदम की कड़ी आलोचना शुरू कर दी है। राहुल गांधी समेत कई प्रमुख विपक्षी नेताओं ने इस व्यवस्था को आरक्षण के खिलाफ और संविधान पर हमला करार दिया है।
सोशल मीडिया पर एक यूजर्स दावा करते दिखे कि बिना IAS की परीक्षा दिए अब तक 52 लोगों को सचिव, डायरेक्टर बनाया जा चुका है। एक बार फिर UPSC ने 45 लोगों का विज्ञापन निकाला है, जिसमें न आरक्षण, न नियम-क़ानून। कुछ का कहना रहा कि UPSC द्वारा लेटरल एंट्री हेतु निकाले गए 45 पदों में SC, ST, OBC वर्ग के लिए एक पद भी आरक्षित (UPSC Lateral Entry Reservation Controversy) नहीं है।
लेटरल एंट्री (Lateral Entry) क्या है?
अक्सर आम भाषा में ‘सीधी भर्ती’ के तौर पर संबोधित की जाने वाली ‘लेटरल एंट्री’ (Lateral Entry) का मतलब है कि सरकार सीधे विशेषज्ञों को उच्च प्रशासनिक पदों पर नियुक्त करती है, जो परंपरागत सिविल सेवा परीक्षा पास किए बिना ही सीनियर ब्यूरोक्रेसी में शामिल होते हैं। इस व्यवस्था का उद्देश्य यह है कि विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों को सरकार में लाया जाए ताकि नीतियों और कार्यक्रमों को बेहतर तरीके से लागू किया जा सके।
UPSC लेटरल एंट्री के पक्ष और विपक्ष
लेटरल एंट्री: पक्ष
विशेषज्ञता का लाभ: लेटरल एंट्री से सरकार को विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों की विशेषज्ञता का लाभ मिलता है, जो सरकारी योजनाओं और नीतियों को अधिक प्रभावी बनाने में सहायक हो सकता है।
गति और प्रभावशीलता: विशेषज्ञों के आने से निर्णय लेने की प्रक्रिया तेज और अधिक प्रभावी होती है, जिससे योजनाओं का कार्यान्वयन बेहतर होता है।
नवाचार: प्राइवेट सेक्टर से आने वाले विशेषज्ञ नए विचार और नवाचार ला सकते हैं, जिससे प्रशासनिक प्रक्रिया में सुधार हो सकता है।
लेटरल एंट्री: विपक्ष
आरक्षण पर असर: विपक्ष का तर्क है कि लेटरल एंट्री से अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवारों का आरक्षण प्रभावित हो सकता है।
संवैधानिक ढांचे पर चोट: राहुल गांधी और अन्य विपक्षी नेताओं का मानना है कि यह व्यवस्था यूपीएससी परीक्षा की प्रक्रिया को दरकिनार कर संविधान पर हमला करती है।
योग्यता और पारदर्शिता का प्रश्न: लेटरल एंट्री के माध्यम से नियुक्ति की प्रक्रिया में पारदर्शिता और योग्यता को लेकर भी सवाल उठते हैं।
UPSC Lateral Entry Reservation: विरोध क्यों?
संसद में नेता प्रतिपक्ष, कांग्रेस के राहुल गांधी और सपा प्रमुख अखिलेश यादव, लेटरल एंट्री की प्रक्रिया का जोरदार विरोध कर रहे हैं। राहुल गांधी ने इसे ‘राष्ट्र विरोधी कदम’ करार देते हुए कहा कि इससे अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और ओबीसी समुदायों का आरक्षण छीना जा रहा है। वहीं, सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने इसे यूपीएससी की तैयारी कर रहे युवाओं के भविष्य पर हमला बताया।
राहुल गांधी ने इसे IAS का ‘निजीकरण’ तक (Privatisation of IAS) बताया। उन्होंने कहा कि आईएएस का ‘निजीकरण’ आरक्षण खत्म करने की ‘मोदी की गारंटी’ है। राहुल का कहना है कि ऐसी नियुक्ति प्रक्रिया देश के प्रशासनिक ढांचे और सामाजिक न्याय दोनों को क्षति पहुंचाती है। उनके मुताबिक, ‘INDIA’ मजबूती से इस देश विरोधी कदम के ख़िलाफ आवाज़ उठाएगा।
नरेंद्र मोदी संघ लोक सेवा आयोग की जगह ‘राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ’ के ज़रिए लोकसेवकों की भर्ती कर संविधान पर हमला कर रहे हैं।
केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों में महत्वपूर्ण पदों पर लेटरल एंट्री के ज़रिए भर्ती कर खुलेआम SC, ST और OBC वर्ग का आरक्षण छीना जा रहा है।
मैंने हमेशा…
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) August 18, 2024
बीजेपी का तर्क – UPSC Lateral Entry Reservation Row
इसके विपरीत, सरकार का तर्क है कि लेटरल एंट्री का कॉन्सेप्ट कांग्रेस के समय में ही आया था और इसे प्रशासनिक सुधार आयोग द्वारा 2005 में सुझाया गया था। बीजेपी का कहना है कि यह व्यवस्था विशेषज्ञता को सरकारी प्रक्रिया में शामिल करने का एक जरिया है और इसे पूरी पारदर्शिता के साथ लागू किया जा रहा है।
UPSC लेटरल एंट्री में क्यों लागू नहीं है आरक्षण? – तकनीकी पहलू
जानकारों का अनुसार, देश भर में होने वाली तमाम सरकारी भर्तियों में आरक्षण के 13 पॉइंट रोस्टर के तहत ओबीसी वर्ग को 27%, एससी वर्ग को 15%, एससी वर्ग को 7.5% और ईडब्ल्यूएस को 10% आरक्षण दिए जाने का प्रावधान है। लेकिन गौर करने वाली बात ये है कि जानकारों के अनुसार, 3 से कम पद होने की स्थिति में आरक्षण का प्रावधान लागू नहीं होता है।
UPSC की नई 45 पदों पर ‘लेटरल एंट्री’ भर्ती पर आए तो, इन भर्तियों के लिए पदों का नोटिफिकेशन अलग-अलग सिंगलपोस्ट वैकेंसी के तहत जारी किया गया है, इसलिए इसमें आरक्षण न मिलने का दावा किया जा रहा है।
लेटरल एंट्री में चयन प्रक्रिया
यूपीएससी (UPSC) द्वारा जारी विज्ञापन के अनुसार, लेटरल एंट्री के जरिए विशेषज्ञों को अनुबंध के आधार पर तीन साल की अवधि के लिए नियुक्त किया जाएगा, जिसे प्रदर्शन के आधार पर पांच साल तक बढ़ाया जा सकता है। इन पदों पर नियुक्तियों के लिए आवेदन 17 सितंबर तक किए जा सकते हैं।
पद | न्यूनतम आयु | अधिकतम आयु | अनुमानित वेतन |
---|---|---|---|
संयुक्त सचिव | 40 वर्ष | 55 वर्ष | ₹2.7 लाख/माह |
निदेशक | 35 वर्ष | 45 वर्ष | ₹2.32 लाख/माह |
उप सचिव | 32 वर्ष | 40 वर्ष | ₹1.52 लाख/माह |
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FAQs: लेटरल एंट्री से जुड़े सामान्य प्रश्न
लेटरल एंट्री क्या है?
लेटरल एंट्री एक प्रक्रिया है जिसके माध्यम से विशेषज्ञों को सीधे सरकारी पदों पर नियुक्त किया जाता है, बिना पारंपरिक सिविल सेवा परीक्षा पास किए।
UPSC में लेटरल एंट्री की आवश्यकता क्यों है?
सरकार का मानना है कि विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों की विशेषज्ञता का लाभ उठाकर नीतियों और योजनाओं का बेहतर कार्यान्वयन किया जा सकता है।
लेटरल एंट्री से कौन-कौन प्रभावित हो सकता है?
विपक्ष का तर्क है कि इससे अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और ओबीसी समुदायों का आरक्षण प्रभावित हो सकता है।
लेटरल एंट्री में चयन प्रक्रिया कैसे होती है?
यूपीएससी द्वारा विज्ञापन के माध्यम से पात्र उम्मीदवारों का चयन किया जाता है। यह चयन प्रक्रिया पूरी तरह से पारदर्शी है और अनुबंध के आधार पर नियुक्ति की जाती है।