अतुल सुभाष केस: Section 498A या धन उगाही का नया हथकंडा? SC भी चिंतित
Section 498A | देश में सेक्शन 498ए विवाहित महिलाओं के खिलाफ हो रही क्रूरता और उत्पीड़न को रोकने के लिए लागू किया गया था। लेकिन अब लगता है कि यह झूठे केस दर्ज करवाने वाले लोगों और भ्रष्टाचार में लिप्त न्यायिक व पुलिस अधिकारियों के लिए धन उगाही का आसान हथकंडा बन चुका है। हाल के अतुल सुभाष (Atul Subhash) व अन्य तमाम केसों को देखकर तो यही लगता है। खुद देश की सर्वोच्च अदालत भी अब इसको लेकर गंभीर चिंता जाहिर कर चुकी है। दरअसल कथित तौर पर पत्नी निकिता सिंघानिया (Nikita Singhania) की प्रताड़ना और फैमिली कोर्ट की जज रीता कौशिक (Reeta Kaushik) के भ्रष्ट रवैये से तंग आकर बेंगलुरु के AI इंजीनियर अतुल सुभाष की आत्महत्या ने पूरे देश को झकझोर दिया है।
सुभाष के 24 पन्नों के सुसाइड नोट और डेढ़ घंटे लंबे वीडियो ने वैवाहिक संबंधों में बढ़ती समस्याओं और ‘IPC की धारा 498A’ या अब ‘भारतीय न्याय संहिता (BNS) में धारा 85 और 8’ के दुरुपयोग की ओर इशारा किया है। इस घटना के बाद देशभर में Section 498A और दहेज प्रताड़ना के नाम पर झूठे मामलों के जरिए परिवारों को निशाना बनाए जाने पर बहस छिड़ गई है। अतुल सुभाष के परिवार का आरोप है कि निकिता और उनके परिवार ने अतुल को दहेज उत्पीड़न के झूठे मामलों में फंसाकर आर्थिक और मानसिक रूप से परेशान किया। अतुल की मां ने मीडिया से बातचीत के दौरान कहा, “हमने अपने बेटे को खो दिया। हमारी गलती सिर्फ इतनी थी कि हमने अपने बेटे की शादी निकिता से करवाई। वह झूठे मामलों के जरिए हमसे पैसा वसूलने की कोशिश कर रही थी।”
अतुल सुभाष केस: क्या हुआ?
पीड़ित अतुल सुभाष ने आत्महत्या से पहले जो सुसाइड नोट और वीडियो छोड़ा, उसमें उन्होंने अपनी पत्नी निकिता और उनके परिवार पर झूठे मामलों में फंसाने और आर्थिक रूप से ब्लैकमेल करने का आरोप लगाया। उन्होंने यह भी बताया कि निकिता ने उनके खिलाफ दहेज उत्पीड़न, घरेलू हिंसा और अन्य आरोपों के तहत कई केस दर्ज किए थे। निकिता ने जौनपुर में अतुल, उनके माता-पिता और भाई के खिलाफ IPC की धारा 498A (Section 498A), 323, 504, 506 और दहेज निषेध अधिनियम के तहत शिकायत दर्ज कराई थी। इस मामले में, अतुल के परिवार का कहना है कि ये सभी आरोप झूठे हैं और उनका एकमात्र उद्देश्य उन्हें मानसिक रूप से परेशान करना और पैसा वसूलना था।
अतुल ने लिखा कि “मैं उसे हर महीने 40 हजार रुपए मेंटेनेंस देता हूं, लेकिन अब वो बच्चे को पालने के नाम पर हर महीनें 2-4 लाख रुपए की डिमांड कर रही है। मेरी पत्नी मुझे मेरे बेटे से न तो मिलने देती है, न कभी बात कराती है।” अतुल के मुताबिक़, पूजा या कोई शादी होने पर निकिता हर बार उनसे कम से कम 6 साड़ी और एक गोल्ड सेट की मांग करती थी। अतुल ने बताया कि वह अपनी सास को भी लगभग ₹20 लाख से अधिक दे चुके हैं, जो उन्हें कभी लौटाए नहीं गए। अतुल ने अपनी आखिरी चिट्ठी में लिखा, “मेरी पत्नी ने ये केस सेटल करने के लिए पहले ₹1 करोड़ की डिमांड की थी, लेकिन बाद में इसे बढ़ाकर ₹3 करोड़ कर दिया।
न्यायिक प्रक्रिया पर अतुल सुभाष ने क्या कहा
अतुल ने खुदकुशी करने से पहले न्याय प्रणाली की आलोचना करते हुए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु को भी पत्र लिखा था। उन्होंने इस पत्र में लिखा था, “आज जिंदा लोगों के लिए कोर्ट के खिलाफ बोलना असंभव है लेकिन एक मुर्दे को तो बोलना ही पड़ेगा। आज भारतीय न्यायपालिका ने अपनी सारी हदें पार कर दी हैं।” अतुल ने सुसाइड नोट में यह भी बताया है कि जब उन्होंने अदालत में जज रीता कौशिक से कहा था कि ऐसे झूठे मामलों के कारण लाखों लोग आत्महत्या कर रहे हैं तो इस पर उनकी पत्नी निकिता ने कोर्ट के सामने कहा था कि तुम भी सुसाइड क्यों नहीं कर लेते?
अतुल ने बताया कि इतना सुनकर जज हंसने लगी थीं। यह भी आरोप लगाया गया कि जज ने सेटेलमेंट के बदले लगभग ₹5 लाख की रिश्वत मांगी थी। अतुल के अनुसार, जब निकिता की ₹3 करोड़ की डिमांड के बारे में उन्होंने जौनपुर की फैमिली कोर्ट की जज को बताया तो उन्होंने भी पत्नी का साथ दिया। अतुल ने बताया कि जज रीता कौशिक ने कोर्ट में उनसे कहा था कि, “ये केस झूठे ही होते हैं, तुम परिवार के बारे में सोचो और केस को सेटल करो। मैं केस सेटल करने के 5 लाख रुपए लूंगी।”
WATCH: Atul Subhash’s का पूरा वीडियो:
आत्महत्या से पहले का #AtulSubhash का 63 मिनट का ये पूरा वीडियो सुनकर निःशब्द और विचलित हूं।
उफ़ ! #JusticeForAtulSubhash
— Vinod Kapri (@vinodkapri) December 10, 2024
निकिता और उनके परिवार का पक्ष
वहीं निकिता और उनके परिवार ने मीडिया से बात करने से इंकार कर दिया है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, पुलिस केस दर्ज होने के बाद निकिता के एक घर में ताला लगा दिखा। न्यूज़18 की एक रिपोर्ट के अनुसार, अतुल सुभाष के ससुराल वाले जौनपुर यूपी में घर पर ताला लगाकर भाग गए हैं। ऑनलाइन सामने आए वीडियो में अतुल की सास और साला भागते दिखे। बकौल रिपोर्ट्स एफआईआर दर्ज होने के बाद बेंगलुरु पुलिस की एक टीम जौनपुर पहुंची है। इस बात की जानकारी मिलते ही दोनों निकल गए। इसके पहले एबीपी न्यूज़ के एक रिपोर्टर जब मृतक के ससुराल पक्ष के लोगों से बात करने यूपी के जौनपुर पहुंचे तो उन्होंने बात नहीं की। ससुराल वालों ने गुस्से में कहा कि “फोटो मत लो, यह एकदम गलत है। आप किसकी अनुमति से फोटो ले रहे हैं? ऐसे करेंगे तो गलत हो जाएगा। आप कैमरा बंद करिए।”
क्या है Section 498A?
भारतीय दंड संहिता की धारा 498A को वर्ष 1983 में लागू किया गया था। इसका उद्देश्य विवाहित महिलाओं को उनके पति और ससुराल पक्ष द्वारा होने वाले शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न से बचाना था। इसमें दहेज की मांग, मारपीट, मानसिक यातना और घरेलू हिंसा जैसे कृत्यों को शामिल किया गया है। इस कानून के तहत अपराध सिद्ध होने पर:
- दोषी को तीन साल की जेल हो सकती है।
- साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
यह एक गैर-जमानती अपराध है, जिसका मतलब है कि गिरफ्तारी के तुरंत बाद जमानत नहीं मिलती। हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में इस कानून के दुरुपयोग की शिकायतें बढ़ी हैं।
दुरुपयोग के संभावित तरीके
- झूठे आरोप: कुछ महिलाएं अपने पति और ससुराल वालों के खिलाफ झूठे आरोप लगाकर उन्हें मानसिक और आर्थिक रूप से परेशान करती हैं।
- ब्लैकमेलिंग: वैवाहिक विवादों में अधिक गुजारा भत्ता पाने के लिए इस कानून का इस्तेमाल ब्लैकमेलिंग टूल के रूप में किया जा रहा है।
- बिना जांच गिरफ्तारी: गैर-जमानती अपराध होने के कारण पुलिस सीधे गिरफ्तारी कर लेती है, जिससे निर्दोष परिवारों को नुकसान होता है।
Section 498A: सुप्रीम कोर्ट भी चिंतित
हाल में सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की धारा 498ए दहेज निरोधक कानून के एक मामले को खारिज करते हुए इसके दुरुपयोग कर चिंता व्यक्ति की। कोर्ट ने मामले पर टिप्पणी करते हुए का कि पत्नी कई बार गैर-वाजिब मांगों को पूरा करने के लिए इसका इस्तेमाल कर पति को मजबूर करती है। कोर्ट ने पति और उसके परिवार से निजी दुश्मनी निकालने के लिए 498ए के दुरुपयोग की बढ़ती प्रवृत्ति की भी आलोचना की।
बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने अदालतों को गुजारा भत्ता तय करते समय 8 बातों पर ध्यान देने की सलाह दी है। पति-पत्नी की सामाजिक-आर्थिक स्थिति, दोनों पक्षों की योग्यता व रोजगार का ज़रिया, पत्नी का ससुराल में रहते हुए जीवनस्तर, और भविष्य में पत्नी, बच्चों की बुनियादी ज़रूरतें क्या होंगी सहित आदि बातों पर ध्यान देते हुए भत्ता तय करने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने गुजारा भत्ता के तौर पर मनमानी राशि तय करने से बचने के लिए कहा है।सर्वोच्च अदालत ने साफ किया कि यह सुनिश्चित करना चाहिए कि भरण-पोषण के लिए दी जाने वाली राशि न्याय संगत हो न कि पति को दंडित करने का जरिया न बने।