‘समानता के असल मायनों’ की आवाज़ बनीं – ‘दीपिका नारायण भारद्वाज’
क्या सिर्फ पुरुष होना, प्रथम दृष्टया अपराधी कहलाने के लिए काफी है? मिलिए दीपिका नारायण भारद्वाज (Deepika Narayan Bhardwaj) से, जिनकी कोशिशें शायद हमारी आँखों पर पड़ा एकतरफा पर्दा हटा सकें।
Deepika Narayan Bhardwaj | इस बात में कोई संदेह नहीं कि आज भी महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों से जुड़े कई मामले सामने आते हैं। बतौर समाज यह प्रयास होना चाहिए कि महिलाओं के साथ हिंसा, छेड़छाड़ व तमाम तरह के शोषण के खिलाफ न सिर्फ आवाज उठाई जाए, बल्कि दोषी साबित हुए अपराधियों को सख्त से सख्त सजा मिले, जिससे इन निंदनीय घटनाओं पर अंकुश लगाया जा सके।
लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि हम अपराध के लिहाज से सामने आने वाले सभी उदाहरणों को एक ही चश्में से देखना शुरू कर दें। सभी मामलों में निष्पक्ष जांच से पहले ही पुरुषों को अपराधी मान लिया जाए। लेकिन अफ़सोस है कि आज के दौर की सच्चाई यही है। पर कुछ लोग हैं जो अपराध को महिला-पुरुष के तराज़ू में न तौल कर, समानता के असल मूल्यों को अपनाते हुए संवेदनशीलता से सच को उजगार करने की कोशिश करते हैं। इनमें से ही एक नाम दीपिका नारायण भारद्वाज (Deepika Narayan Bhardwaj) का भी है।
क्योंकि हर सच ज़रूरी है
सच है कि देश में आज भी महिलाओं के उत्पीड़न से जुड़े मामलों में कमी नहीं आई है, इन अपराधों की संख्या भी कहीं अधिक है। और अगर इसमें सुधार करना है तो घर के माहौल, परवरिश, सामाजिक व्यवहार और कानून जैसे सभी पहलुओं पर काम करने की आवश्यकता है। पर इस तथ्य से भी आँख नहीं मूँदी जा सकती कि आज के ही समय में कई ऐसे उदाहरण भी हैं, जिनमें बेगुनाह पुरुषों को झूठे आरोपों में फंसाने की कोशिश देखनें को मिलती है। और ऐसे मामलों में सबसे बड़ा हथियार समाज की उस सोच को बनाया जाता है, जिसके तहत दोनों पहलुओं के सच को जाने बिना, अधिकांश समाज प्रथम दृष्टया पुरुषों को ही दोषी, अपराधी सिद्ध करने में लग जाता हैं। जबकि कई ऐसे उदाहरण भी हैं, जिनमें असल कहानी इसके बिल्कुल विपरीत होती है।
Deepika Narayan Bhardwaj के बारे में!
सबसे पहले तो हम ये साफ कर दें कि यह किसी प्रकार का कोई PR प्रमोशन नहीं है। हुआ ये कि हमारी टीम के एक शख़्स ने सोशल मीडिया पर दीपिका भारद्वाज द्वारा साझा एक पोस्ट देखा और फिर उसने दीपिका जी द्वारा शेयर की गई तमाम सच्ची घटनाओं के बारे में पढ़ा। इसके बाद हमारी टीम के साथी ने विचार प्रकट किया कि हमें भी अपनी नैतिक जिम्मेदारी के तहत इस पहलू को सबके सामने प्रस्तुत करने की कोशिश करनी चाहिए।
होता ये है कि आधिकांश व्यक्ति सुबह उठते हैं, अखबार या मोबाइल पर खबरें पढ़ते है, और सीमित उदाहरणों के साथ धीरे-धीरे समाज को देखनें की एकदिशीय धारणा बना लेते हैं। लेकिन यक़ीन मानिए जब आप किसी न किसी स्वरूप में पत्रकारिता से जुड़े होते हैं, तो आपकी निगाहें दिन भर कई ख़बरों से गुजरती हैं। और तब एहसास होता है कि भारत के संविधान में वर्णित ‘अनुच्छेद 14 – कानून की नजर में सभी की समानता‘ क्यों महत्वपूर्ण है।
जब आप सोशल मीडिया – जो आज एक अहम एक सार्वजनिक मंच बन चुका है – पर दीपिका नारायण भारद्वाज जैसी आवाज़ों को पढ़ते-सुनते हैं, तो पता चलता है कि अपराधों को लेकर ‘संवेदनशीलता’ किसी एक वर्ग के लिए सीमित रखना भी तो गलत है। पेशे से पत्रकार, फिल्म निर्माता व सामाजिक कार्यकर्ता, दीपिका नारायण भारद्वाज ने कई ऐसे मामलों को आवाज़ दी है, जो शायद बतौर समाज हमारी एकतरफा सोच को झकझोर कर रख दे।
दीपिका नारायण भारद्वाज का एक पोस्ट
INDORE : 19 yr old Gaurav hanged himself to death after a #falserape case was lodged against him by 25 yr old Teacher Akanksha who was in relationship with him since 11 months
Akanksha allegedly demanded 5 Lacs to take back case
NO ACTION YET by @MPPoliceDeptt @MPPoliceOnline pic.twitter.com/cbn6JNHfGL
— Deepika Narayan Bhardwaj (@DeepikaBhardwaj) August 9, 2024
टीम के साथी ने कहा कि जो बात उसे सबसे अधिक प्रभावित की वह ये कि खुद एक महिला होकर दीपिका मुखरता से ‘समानता के असल मायनों‘ को सार्वजनिक मंच पर प्रस्तुत करने का प्रयास कर रही हैं। ये ज़रूरी भी था, क्योंकि अगर एक पुरुष ही पुरुष अधिकारों की बात करने लगे, तो आज के दौर में उसको गंभीरता से लेने के बजाए ‘ट्रोल’ ज़्यादा किया जाएगा।
‘सिर्फ महिला का दोष है‘ या ‘केवल पुरुष ही गलत है‘ इस सोच से परे निकलकर, सच्चाई सामने आने तक समान संवेदनशीलता का दृष्टिकोण अपनाना हममें से बहुत से लोग शायद आज के समय में भूल चुके हैं।
एकतरफा धारणा का जाल
सोशल मीडिया का दौर है…घटना का सच जाने बिना, घटना पर जल्द से जल्द अपनी राय पोस्ट कर देना कहीं ज़रूरी बन चुका है। दिक्कत इसलिए गंभीर हो जाती है क्योंकि समाज तो समाज बल्कि क़ानून भी पुरुष के ख़िलाफ होने वाले अपराधों को लेकर कई मोर्चों पर असंवेदनशील दिखाई पड़ता है। शायद तब उन पर सोशल मीडिया या टीवी मीडिया का उतना दबाव नहीं होता। लगता होगा कि कौन ही है जो किसी बेगुनाह लड़के/पुरुष की आवाज़ उठाएगा।
मीडिया भी शायद उतना जोर ना दें क्योंकि वहां तो मामला ‘सच’ से ज़्यादा ‘टीआरपी’ का जो बन बैठा है। लेकिन ऐसे माहौल में दीपिका भारद्वाज जैसी एक भी आवाज़ उन बेगुनाहों को थोड़ी राहत ज़रूर दे जाती है, जो शायद यह सोचते होंगे कि पूरा सच जाने बिना ही क्यों समाज या क़ानून ने उन्हें अपराध के तराज़ू में तौलना शुरू कर दिया? क्या सिर्फ पुरुष होना, प्रथम दृष्टया अपराधी कहलाने के लिए काफी है?
बहुत कुछ है जो ‘दीपिका नारायण भारद्वाज’ व उनके जैसे तमाम अन्य लोगों की कोशिशों और ऐसे मामलों को लेकर कहा जा सकता है, और आने वाले दिनों में हम कहते रहने की कोशिश भी करेंगे!
ALSO READ: क्या EVM हैक हो सकते हैं? आपके मन में भी है सवाल, तो ये जरूर सुने!