Bitcoin Halving क्या है, बिटकॉइन की कीमत बढ़ेगी या घटेगी? (Explained)
क्रिप्टोकरेंसी बाजार में ‘बिटकॉइन हाॅल्विंग या हॉल्टिंग’ का क्या मतलब होता है? इससे क्रिप्टो की कीमत कम हो जाएगी या बढ़ेगी? सभी सवालों के जवाब जानिए…
एक बार फिर ‘बिटकॉइन हाॅल्विंग’ (Bitcoin Halving) क्रिप्टोकरेंसी बाजार में चर्चा का केंद्र बन चुकी है। तमाम लोग परेशान है कि आखिर बिटकॉइन का भविष्य क्या होगा। क्या बिटकॉइन की कीमत आधी रह जाएगी? इसको लेकर इंटरनेट पर तमाम तरीके की अटकलें लगाई जा रही हैं। कहा जा रह है कि बिटकॉइन के दाम 50% तक गिरने जा रहे हैं।
लेकिन इन बातों में कितनी सच्चाई है। और ये बिटकॉइन हाॅल्विंग आखिर क्या चीज है? ये कैसे बिटकॉइन माइनर्स की कमाई के साथ ही साथ क्रिप्टो की कीमतों को भी प्रभावित करती है? आइए इन सभी सवालों के जवाब जानते हैं!
बिटकॉइन हाॅल्विंग (Bitcoin Halving) क्या है?
शुरुआत करते हैं ये समझने से कि आखिर बिटकॉइन हाॅल्विंग होती क्या है। सरल शब्दों में समझने की कोशिश करें तो ‘बिटकॉइन हाॅल्विंग‘ एक ऐसी स्थिति को कहते हैं जब बिटकॉइन माइनिंग का इनाम या दाम आधा कर दिया जाता है। मतलब ये कि इस क्रिप्टोकरेंसी के लेन-देन को सत्यापित करने वाले माइनर्स को 50% कम बिटकॉइन मिलने लगते हैं। इसे कई बार ‘बिटकॉइन हॉल्टिंग’ का भी नाम दिया जाता है।
विशेषज्ञों के अनुसार, ‘बिटकॉइन हाॅल्विंग या हॉल्टिंग’ असल में बिटकॉइन के कोड में लिखी गई एक पूर्व-निर्धारित प्रक्रिया है, जो लगभग हर 4 साल में दोहराई जाती है। इसका मकसद नए बिटकॉइन जनरेट करने की दर को धीमा करना होता है।
ऐसा माना जाता है कि जब तक माइनर्स नेटवर्क द्वारा 21 मिलियन बिटकॉइन का अधिकतम जनरेशन पूरा नहीं कर लिया जाता, तब तक करीब हर 4 साल में प्रत्येक 2,10,000 नए यूनिट उत्पन्न करने के बाद 1 बार ‘बिटकॉइन हाॅल्विंग’ होती रहेगी।
बिटकॉइन हाॅल्विंग प्रक्रिया को कुछ 4 चरणों में समझा जा सकता है:
- बिटकॉइन माइनर्स द्वारा नए डेटा ब्लॉक बनाकर कॉइन्स को वेरिफाई किया जाता है।
- एक समय के बाद बिटकॉइन माइनर्स 2,10,000 नए यूनिट्स का आंकड़ा छू लेते हैं।
- इसके बाद बिटकॉइन हाॅल्विंग प्रक्रिया शुरू हो जाती है और माइनर्स रिवॉर्ड आधा हो जाता है
- ऐसे में माइनर्स को कम डेटा ब्लॉक बनाने के लिए प्रेरित किया जाता है।
बिटकॉइन हाॅल्विंग का कीमतों पर असर
बिटकॉइन हाॅल्विंग ट्रेडर्स से लेकर माइनर्स तक के लिए एक अहम घटना होती है। एक ओर माइनर्स को इसके चलते 50% कम बिटकॉइन ही मिल पाते हैं, वहीं दूसरी ओर ट्रेडर्स या बिटकॉइन मालिकों को इसका लाभ भी होता है। आइए बताते हैं कैसे?
माइनर्स के नेटवर्क द्वारा जनरेट होने वाले नए बिटकॉइन की संख्या जब आधी हो जाती है तो ऐसे में इन नए क्रिप्टो कॉइन की आपूर्ति की मात्रा भी सीमित हो जाती है। इस प्रकार ‘सीमित आपूर्ति लेकिन अधिक क्रिप्टो मांग’ की वजह से बिटकॉइन की कीमतें बढ़ने की उम्मीद होती है।