तहसीलदार से लेखपाल तक पदों पर आउटसोर्सिंग से भर्ती पर बढ़ा विवाद
उत्तर प्रदेश के गोरखपुर नगर निगम ने तहसीलदार, नायब तहसीलदार, राजस्व निरीक्षक और लेखपाल जैसे महत्वपूर्ण पदों पर आउटसोर्सिंग के जरिए रिटायर्ड कर्मचारियों की भर्ती के लिए एक विज्ञापन निकाला है।
Outsourcing Bharti From Lekhpal To Tehsildar in Uttar Pradesh | उत्तर प्रदेश में सरकारी पदों पर आउटसोर्सिंग के जरिए भर्ती का फैसला हाल के दिनों में विवाद का विषय बन गया है। गोरखपुर नगर निगम द्वारा तहसीलदार से लेकर लेखपाल तक के पदों पर आउटसोर्सिंग से भर्ती करने के विज्ञापन ने इस पर चर्चा को और तेज कर दिया है। विपक्षी दलों ने इस फैसले की कड़ी आलोचना की है, इसे पिछड़ों और दलितों के अधिकारों के खिलाफ बताया है।
उत्तर प्रदेश के गोरखपुर नगर निगम ने तहसीलदार, नायब तहसीलदार, राजस्व निरीक्षक और लेखपाल जैसे महत्वपूर्ण पदों पर आउटसोर्सिंग के जरिए रिटायर्ड कर्मचारियों की भर्ती के लिए एक विज्ञापन निकाला है। विज्ञापन में बताया गया है कि इन पदों पर चयनित उम्मीदवारों को फिक्स सैलरी पर काम करना होगा। इसमें तहसीलदार को 35,000 रुपये, नायब तहसीलदार को 30,000 रुपये, राजस्व निरीक्षक को 29,000 रुपये और लेखपाल को 27,000 रुपये प्रतिमाह वेतन देने का प्रस्ताव है। इस निर्णय के बाद से ही राज्य में विपक्षी दलों ने विरोध जताना शुरू कर दिया है।
Outsourcing Bharti: सरकार पर साधा निशाना
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इस फैसले की कड़ी आलोचना करते हुए इसे राज्य सरकार द्वारा जनता के संवैधानिक अधिकारों को छीनने की कोशिश करार दिया है। उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार का यह फैसला पिछड़ों और दलितों के खिलाफ एक आर्थिक साजिश है।
अखिलेश यादव ने अपने आधिकारिक सोशल मीडिया अकाउंट एक्स पर कहा कि “बेहतर होगा कि भाजपा अपनी पूरी सरकार को ही आउटसोर्स कर दे, ताकि उन्हें कहीं और से सारा कमीशन एक साथ मिल सके।” उन्होंने सरकार पर आरोप लगाया कि वह आउटसोर्सिंग के माध्यम से रोजगार देने की बजाए आरक्षण के अधिकारों को खत्म करने की कोशिश कर रही है।
बेहतर होगा कि भाजपा पूरी की पूरी ‘सरकार’ ही आउटसोर्स कर दे तो उसका एक जगह से ही सारा कमीशन, एक साथ सेट हो जाए। ऐसा करने से भाजपा को फुटकर में नौकरी और उसके बहाने आरक्षण को ख़त्म करने का महाकष्ट नहीं उठाना पड़ेगा।
हम तो हमेशा से कहते रहे हैं, आज फिर दोहरा रहे हैं: नौकरी भाजपा के… pic.twitter.com/XPLHd7touT
— Akhilesh Yadav (@yadavakhilesh) November 21, 2024
आजाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर का भाजपा पर हमला
समाजवादी पार्टी के अलावा आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष और सांसद चंद्रशेखर आजाद ने भी इस फैसले का विरोध किया। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ नारे को जातिगत मुद्दों से जोड़कर देखा जाना चाहिए। चंद्रशेखर ने कहा कि यह नारा दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के अधिकारों में कटौती का संकेत है। उनका कहना है कि अगर समाज के ये वर्ग बंटे रहेंगे तो उनके अधिकारों का हनन होता रहेगा। चंद्रशेखर ने इस नारे के जरिए सरकार के आउटसोर्सिंग नीति की आलोचना की और जनता से एकजुट होकर इस फैसले का विरोध करने की अपील की।
जिस देश को “युवा भारत” कहकर पूरे विश्व के निवेशकों को लुभाया जाता है, उसी “युवा भारत” के उत्तर प्रदेश में रिटायर्ड तहसीलदार- लेखपाल को आउटसोर्सिंग पर नियुक्त करना युवाओं के साथ खुला अन्याय है।
लाखों युवा दिन-रात मेहनत कर रोजगार की तैयारी करते हैं, लेकिन उनकी जगह सेवानिवृत्त… pic.twitter.com/lM5X1JLame
— Chandra Shekhar Aazad (@BhimArmyChief) November 21, 2024
राजनीतिक संगठनों का कहना है कि यह निर्णय आरक्षण के अधिकारों पर एक सीधा हमला है। जब तक सरकारी नौकरियों में आरक्षण नीति लागू होती रही है, तब तक समाज के पिछड़े और दलित वर्ग को नौकरियों में मौका मिलता रहा है। लेकिन आउटसोर्सिंग के जरिए भर्ती करने से इन पदों पर रिटायर्ड अधिकारी और बाहरी कंपनियों के लोग नियुक्त हो जाएंगे, जिससे आरक्षण का लाभ इन वर्गों को नहीं मिल पाएगा।
आउटसोर्सिंग से भर्ती (Outsourcing Bhart) क्यों?
इसको लेकर तमाम सरकारों का तर्क रहता है कि यह निर्णय प्रशासनिक जरूरतों को ध्यान में रखते हुए लिया गया है। सरकारी नौकरियों में उम्मीदवारों की कमी के कारण, इन पदों को तेजी से भरने के लिए आउटसोर्सिंग का सहारा लिया जा रहा है। सरकार का मानना है कि इससे प्रशासनिक कार्यों में तेजी आएगी और राजस्व की बढ़ोतरी होगी। लेकिन, विपक्ष का मानना है कि यह तरीका आरक्षण नीति को कमजोर कर सकता है।
आउटसोर्सिंग के जरिए सरकारी पदों पर भर्ती करने का निर्णय प्रशासनिक प्रक्रियाओं को तेज कर सकता है, लेकिन यह पारंपरिक भर्ती प्रक्रियाओं में अस्थिरता भी ला सकता है। आरक्षण नीति के अनुसार, सरकारी नौकरियों में पिछड़े और दलित वर्ग को एक निर्धारित अनुपात में रोजगार का अधिकार दिया जाता है, लेकिन आउटसोर्सिंग के माध्यम से नियुक्तियां इस नीति का उल्लंघन कर सकती हैं। इसके अलावा, आउटसोर्सिंग के जरिए भर्ती की प्रक्रिया में बाहरी कंपनियों और निजी एजेंसियों की भागीदारी होती है, जो नौकरियों में आरक्षण का लाभ नहीं देतीं। इससे सामाजिक न्याय की अवधारणा खतरे में पड़ सकती है, और सरकारी नौकरियों में भ्रष्टाचार का भी खतरा बढ़ सकता है।